चंद्रमा छोटा-बड़ा क्यों दिखाई देता है?
यह सामान्य अनुभव की बात है कि पूर्णिमा के दिन चंद्रमा चमकती हुई तश्तरी जैसा दिखाई देता है, लेकिन घटते-घटते वह अमावस्या की रात को बिल्कुल गायब हो जाता है। चंद्रमा के इस तरह घटने-बढ़ने को चंद्रमा की कलाएं (Phase of the moon) कहा जाता है। क्या आप जानते हो कि चंद्रमा हमें घटता-बढ़ता क्यों दिखाई देता है।
चंद्रमा छोटा-बड़ा क्यों दिखाई देता है? |
वास्तविकता यह है कि चंद्रमा न तो घटता है और न ही बढ़ता है। यह सूर्य के पड़ने वाले प्रकाश की विविधता के कारण ही घटता-बढ़ता दिखाई देता है। हम सभी जानते हैं कि चंद्रमा पृथ्वी का उपग्रह है और जिस प्रकार पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा करती है, ठीक उसी प्रकार चंद्रमा, पृथ्वी और सूर्य की परिक्रमा करता है। इसे पृथ्वी की एक परिक्रमा करने में लगभग 29/2 दिन लगते हैं। यह सूर्य के प्रकाश से चमकता है। इस पर पड़ने वाला सूर्य का प्रकाश परावर्तित होकर हमारी धरती पर पहुंचता है। चंद्रमा का एक ही भाग पृथ्वी की ओर रहता है। इसका दूसरा भाग हमें दिखाई नहीं देता। जब चंद्रमा सूर्य और पृथ्वी के बीच में आ जाता है, तब इसका चमकने वाला भाग पृथ्वीवासियों को दिखाई नहीं देता है। केवल अंधकारमय भाग ही पृथ्वी के सामने होता है। इसलिए हमें चंद्रमा का कोई भाग चमकता हुआ दिखाई नहीं देता। यही अमावस्या का चंद्रमा है।
चंद्रमा छोटा-बड़ा क्यों दिखाई देता है? |
जैसे-जैसे चंद्रमा की गति के कारण इसकी स्थिति बदलती है, वैसे-वैसे इसकी सतह का कुछ प्रकाशित भाग हमें दिखाई देने लगता है। अमावस्या के बाद एक सप्ताह तक चंद्रमा की आधी सतह हमें दिखने लगती है। धीरेधीरे पूर्णिमा तक इसकी प्रकाशित सतह का दिखने वाला भाग बढ़ता जाता है और पूर्णिमा के दिन पृथ्वी से दिखने वाली सतह पूर्ण प्रकाशित हो जाती है। यह पूर्णिमा का चंद्रमा होता है। इस दिन पृथ्वी सूर्य और चंद्रमा के बीच में होती है। अगले पंद्रह दिनों में फिर इसकी प्रकाशित सतह का हिस्सा दिखाई देना कम होता जाता है और पंद्रह दिन बाद अर्थात अमावस्या को फिर हमें इसकी चमकने वाली सतह का दिखाई देना बंद हो जाता है। यह क्रम लगातार चलता रहता है और हमें चंद्रमा छोटा-बड़ा दिखाई देता रहता है। पूर्णिमा का चंद्रमा सूर्य के छिपते ही दिखने लगता है और सूर्य कि निकलते ही छिप जाता है।
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