सबसे पहली बंदूक कब बनी थी? | When was the first gun made?

बंदूक (Gun) एक ऐसा हथियार है, जो एक नली के द्वारा गोलियां दागता है। बंदूक की नली में गोली को एक विस्फोटक पदार्थ के सामने रखा जाता है। विस्फोटक प्रज्ज्वलित होने पर भारी मात्रा में गर्म गैसें पैदा होती हैं। ये गर्म गैसें तेजी के साथ फैलती हैं, जिससे गोली पर बल लगता है । इस बल के कारण गोली तीव्रता के साथ नली से बाहर निकल पड़ती है। यद्यपि इसे प्रमाणित तथ्य नहीं माना जाता, लेकिन यह माना जाता है कि सबसे पहले बंदूकें 1250 ईस्वी में चीन और उत्तरी अफ्रीका में बनी थीं। 

सबसे पहली बंदूक कब बनी थी? (FULL INFORMATION IN HINDI)
Gun

बंदूक का इतिहास 

इंगलिश गन अपने प्रारंभिक प्रारूप में 1350 ईस्वी की एक चित्रोंवाली पांडुलिपि में संग्रहित है। यह पांडुलिपि आक्सफोर्ड के पुस्तकालय में उपलब्ध है।

भारी तोपों का सबसे पहले इस्तेमाल 1350 ईस्वी में हुआ। इनमें एक नली होती थी, जिसका एक सिरा खुला तथा दूसरा सिरा बंद होता था। ये तोप लकड़ी के एक आधार पर लगा दी जाती थी। बंदूक चलाने वाला नली के खुले सिरे पर, जिसे नली मुख (Muzzle) कहते हैं, बारूद भरता था। इस बारूद को फिर वह नली के बंद सिरे की ओर, जिसे ब्रीच (Breech) कहते हैं, धकेल देता था। इसके पश्चात वह तोप का गोला नली में डाल देता था। फिर वह एक जलती हुई बत्ती बीच में बने छेद में लगाता था। इससे बारूद में आग लग जाती थी, जिससे तेजी से गोला बाहर निकल पड़ता था।

भारत में बंदूक का आगमन 

जयपुर के राजा सवाई जयसिंह ने 1720 में पहियों पर एक तोप लगवाई थी, जो विश्व भर में पहियों पर लगी हुई सबसे बड़ी तोप है। जयवाना (Jaivana) नामक इस तोप की नली 20 फीट लंबी है। इसका भार 50 टन है। एक बार गोला दागने के लिए इसे 100 किलोग्राम बारूद की जरूरत होती है और यह 35 किलोमीटर की दूरी तक मार कर सकती थी।

सोलहवीं शताब्दी के दौरान पिस्तौल और अन्य प्रकार की बंदूकें सामान्य हो गई थी, लेकिन इनमें गोलियां नली के मुख से भरी जाती थीं। 1800 में ऐसी बंदूकें आईं, जो नुकीले गोले दागती थीं। ये गोले अपने निशाने पर लगने के बाद फट जाते थे। 19वीं शताब्दी में एक दूसरे प्रकार की बंदूक का आविष्कार हुआ। इस बंदूक को पीछे से भरा  जाता है और धातुओं की गोली के स्थान पर कारतूस का इस्तेमाल किया जाता है।

बंदूक की कार्यप्रणाली 

कारतूस बंदूक के पिछले में लगाए जाते हैं । कारतूस में धातु या कागज की एक नली होती है, जिसम गोली रखी होती है। इसमें कुछ पाउडर भी होता है। यह सब कुछ एक टोपी से बंद कर या जाता है। यह टोपी कारतूस के पिछले भाग पर लगा दी जाती है। इसमें कुछ विस्फोटक पदार्थ भी होता है। यह विस्फोटक बहुत ही संवेदी होता है और एक पिन से टकराने पर तुरंत ही फट जाता है। इसके फटने से गोली को बल मिलता है और वह निकल पड़ती है। 19वीं सदी तक पीछे से  लोड (load) होने वाली राइफलें और पिस्तौलें सामान्य प्रयोग में आने लगी थीं।

सबसे पहली बंदूक कब बनी थी?
सबसे पहली बंदूक कब बनी थी?

सन 1835 में अमेरिका के सैम्यूल कॉल्ट (Samuel Colt) ने पिस्तौल का आविष्कार किया, जिसे चलाने पर एक घूमती हुई गोली निकलती थी। चूंकि इसमें गोली धर्णन करती हुई निकलती थी, इसलिए उसने इसका नाम रिवॉल्वर रखा। इसमें एक कक्ष (Chamber) होता है, जिसमें पांच-छ: कारतूस आ सकते हैं। जब रिवॉल्वर का टिगर (Triggere) दबाया जाता है, तब कक्ष घूमता है और कारतूस को नली की सीध में समायोजित कर देता है। आधुनिक रिवॉल्वर भी कॉल्ट द्वारा बनाई गई रिवॉल्वर से बहुत मिलती-जुलती है।

बंदूक का प्रचलित होना 

19वीं शताब्दी के दौरान, राइफल बहुत प्रचलित हो गई थी। इनमें कारतूस रखने के लिए मैगजीन (Magazine) प्रयोग की जाती थी। इनमें कारतूस को नली में भेजने के लिए एक तंत्र (Bolt) होता है। इन राइफलों का प्रयोग दोनों विश्वयुद्धों में बहुत बड़े पैमाने पर किया गया।

द्वितीय विश्वयुद्ध की समाप्ति के दौरान आविष्कारकों ने लंबी दूरी पर निशाना साधने के लिए मशीनगन (Muskets Gun) का विकास किया। ये ऐसी स्वचालित लाइट गनें हैं, जिनमें गोलियां तब तक चलती रहती हैं, जब तक कि ट्रिगर दबा रहता है। इसके पश्चात फील्ड गन नामक भारी गनों का निर्माण हो गया।

आधुनिक फील्ड गर्ने चार टन भार तक की होती हैं और इनमें प्रयोग होने वाले शेल (Shell) 40 किलोग्राम तक के होते हैं। ये शेल 14 किलोमीटर तक निशाना साध सकते हैं। इन गनों की नली बहुत उत्तम इस्पात से बनाई जाती है और ये गनें बहुत महंगी होती हैं। आधुनिक पिस्तौलों में एक हथौड़ा बारूद को फोड़ता है, जो गोली को नाल से बाहर फेंकती है।

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