बच्चे का जन्म कैसे होता है |
महिलाओं में जब माहवारी का एक चक्र पूरा होता है, तब पहले दो हफ्तों के दौरान डिम्ब ग्रन्थि में एक अंडा विकसित होता है और गर्भाशय में आ जाता है। यदि इस अवधि में स्त्री व पुरुष संभोग करते हैं, तब अंडे के निषेचित होने की संभावना होती है। इस प्रक्रिया को गर्भाधान कहते हैं।
गर्भाधान के बाद अंडे का विकास तेजी से होता है और भ्रूण का रूप धारण करता है। बढ़ते हुए भ्रूण को मां का शरीर ऑक्सीजन व भोजन प्रदान करता है। जल्द ही भ्रूण के हृदय और मस्तिष्क जैसे आवश्यक अंग विकसित हो जाते हैं। लगभग छ: सप्ताह बाद होंठ, आंख, कान व अन्य अंग भी विकसित होने लगते हैं।
आठ हफ्तों बाद शिशु (जिसे अब गर्भ कहा जाता है) के ऊतक, तंत्रिकातंत्र, मांसपेशियां, अस्थिपंजर सहित अन्य सभी अंग भी आकार ले चुके होते हैं। अगले सात महीनों तक गर्भ एक शिशु के रूप में विकसित होता रहता है और नौ माह बाद यह गर्भस्थ शिशु जन्म ले लेता है।
शिशु |
जब एक शिशु के जन्म का समय आता है, तब गर्भाशय की मांसपेशियां संकुचन-विमोचन कर शिशु को बाहर धकेलती हैं और गर्भाशय का मार्ग खुल जाता है। इस प्रक्रिया में मां को असहनीय प्रसव पीड़ा होती है। अंतत: शिशु मां के गर्भ से इस दुनिया में आ जाता है।
सामान्यतः शिशु के नितंबों पर हल्की सी थपकियां दी जाती हैं या उसे पहले गर्म फिर ठंडे पानी में डाला जाता है, ताकि वह रोए और मुंह खुलने से सांस लेना शुरू करे। इसके बाद डॉक्टर गर्भ नाल काट देते हैं, जिससे शिशु गर्भ में मां से जुड़ा था और पोषण प्राप्त कर रहा था।