"विज्ञान की दुनिया" में आप का स्वागत है , आज हम यहाँ पाइथागोरस (pythagoras) के बारे में जानेंगे।पाइथागोरस एक महान गणितज्ञ थे और इनका ज्यामितीय गणित में महत्वपूर्ण योगदान रहा है। तो आइये शुरू करते हैं :-
हम सभी प्रारंभिक ज्यामिती (Elementry Geomatry) के अध्ययन में, 'पाइथागोरियन थ्योरी (pythagoras theorem)' से परिचित हैं। इसमें बताया जाता है कि किसी भी समकोणीय त्रिभुज की सबसे लंबी भुजा से बनाया जाने वाला समकोण, दूसरी ओर की दो भुजाओं से बनने वाले समकोणों की लंबाई के जोड़ के बराबर होता है।
pythagoras kaun tha |
क्या आप जानते हैं कि वह व्यक्ति कौन था, जिसने इस सिद्धान्त की खोज की थी जो आज तक ज्यामिती में त्रिकोणों के अध्ययन का आधार है? वह यूनान का दार्शनिक, गणितज्ञ और खगोलशास्त्री पाइथागोरस (pythagoras) था। पाइथागोरस (pythagoras) का जन्म यूनान के समास में ईसा से 500 वर्ष पूर्व हुआ था। समास इटली के आधुनिक मेटापोंटो नगर के निकट स्थित है। वह वहां से ईसा से 532 वर्ष पूर्व दक्षिणी इटली चला गया, क्योंकि उसके प्रदेश में तानाशाही शासन था और वह उससे बचना चाहता था।
लेकिन उसका जिज्ञासु और खोजपरक मन उसे अपने सिद्धांतों और धारणाओं के बारे में दूसरों के साथ विचार-विनिमय करने के लिए प्रेरित करता रहा। इसी के फलस्वरूप उसने कारटन में (जो अब क्रोटोना के नाम से जाना जाता है) एक अकादेमी की स्थापना की। वहां उसने नैतिकता, राजनीति और पारस्परिक भाईचारे की जो शिक्षाएं दी, उनका लोगों पर बहुत असर पड़ा ।
पाइथागोरस (pythagoras) |
इटली और यूनान के अधिकांश क्षेत्रों में पाइथागोरस (pythagoras) के विचारों का अच्छा प्रसार-प्रसार हुआ, लेकिन ईसा पूर्व चौथी शताब्दी के अंत तक कुछ कारणों से, समाज और शासन के विरोध के कारण धीरे-धीरे उसका प्रभाव समाप्त हो गया। उसके द्वारा खोजी गई संख्याओं के क्रियात्मक महत्व से संबंधित योगदान ने गणित तथा ज्यामिती पर एक अमिट छाप छोड़ी। वास्तव में उसके विचारों का प्रभाव पश्चिमी दर्शन के अतिरिक्त गणित तथा ज्यामिती के विकास पर भी पड़ा। यह एक प्रमाणित तथ्य है कि प्लेटो और अरस्तु के विचारों पर उसके दर्शन का बहुत असर पड़ा।
विज्ञान जगत में ज्यामिती, बीजगणित, खगोलशास्त्र, उचित व्यवहार आदि से संबंधित उसके सिद्धान्तों को कतज्ञता सहित स्वीकार किया गया। उदाहरण के लिए प्रसिद्ध खगोलशास्त्री कॉपरनिक्स ने पाइथागोरस (pythagoras) को अपने इस सिद्धांत का अग्रदूत माना है कि ग्रह सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाते हैं। सत्य के इस अन्वेषक की ईसा पूर्व 493 में 83 वर्ष की उम्र में मृत्यु हो गई।